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शाह ने बताई जमीनी हकीकत, पूछा- पश्चिमी सीमा पर शांति तो पूरब में क्यों अशांति…

by admin477351

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह का ताजा भाषण ‘घुसपैठ, जनसांख्यिकीय बदलाव और लोकतंत्र’ के विषय पर न सिर्फ़ सियासी विमर्श में नया मोड़ ला रहा है, बल्कि इसके सामरिक और भूराजनीतिक आयाम भी अत्यंत जरूरी हैं. अमित शाह ने अपने भाषण में साफ किया कि घुसपैठ कोई सियासी मामला नहीं, बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा और लोकतंत्र के लिए गंभीर खतरा है. उन्होंने इस खतरे को सिर्फ़ सीमा सुरक्षा का प्रश्न नहीं बल्कि राज्य और केंद्र दोनों की जिम्मेदारी के रूप में प्रस्तुत किया, जिससे यह संकेत मिलता है कि हिंदुस्तान की सीमा नीति में योगदान और समन्वय की जरूरत है.

अमित शाह ने विशेष रूप से बोला कि कुछ सियासी दल घुसपैठियों को वोट बैंक के रूप में देखते हैं और यही कारण है कि कुछ राज्यों में गैरकानूनी प्रवासियों को संरक्षण मिलता है. यह इल्जाम न सिर्फ़ विपक्ष पर निशाना साधता है बल्कि हिंदुस्तान की लोकतांत्रिक प्रक्रिया में गैरकानूनी हस्तक्षेप की आसार की ओर भी इशारा करता है. उनके द्वारा दिए गए आंकड़े, जैसे असम में मुसलमान जनसंख्या की दशकीय वृद्धि रेट 29.6 फीसदी और पश्चिम बंगाल के सीमावर्ती जिलों में 70 फीसदी तक का उछाल, घुसपैठ और जनसांख्यिकीय बदलाव के प्रति गंभीर चेतावनी हैं. यह आंकड़े सियासी विमर्श के साथ-साथ राष्ट्रीय सुरक्षा नीति के निर्माण में भी निर्णायक किरदार निभाते हैं.
इसके अलावा, भूराजनीतिक दृष्टि से अमित शाह ने यह प्रश्न उठाया कि गुजरात और राजस्थान की सीमाओं पर घुसपैठ क्यों नहीं होती, जबकि पूर्वी सीमाओं पर यह बढ़ रही है. यह सीधे तौर पर सीमा प्रबंधन और पड़ोसी देशों— विशेषकर बांग्लादेश और पाकिस्तान, के साथ हिंदुस्तान की सुरक्षा रणनीति की जटिलताओं को उजागर करता है. भाषण में झारखंड के जनजातीय समुदायों की गिरावट का उल्लेख, घुसपैठ को सिर्फ़ आर्थिक या सियासी मामला नहीं बल्कि सामाजिक संरचना पर भी असर डालने वाला कारक कहा गया है.
अमित शाह ने शरणार्थी और घुसपैठियों के बीच फर्क साफ किया. उनका बोलना है कि शरणार्थी धार्मिक उत्पीड़न से आए हैं, जबकि घुसपैठिये गैरकानूनी रूप से आर्थिक या अन्य कारणों से प्रवेश करते हैं. यह वर्गीकरण सिर्फ़ नीति निर्माण के लिए नहीं, बल्कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर हिंदुस्तान की स्थिति साफ करने के लिए भी जरूरी है. इससे यह संदेश जाता है कि राष्ट्र के संविधान और लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा करना केंद्र और राज्य सरकारों की साझा जिम्मेदारी है.
इस भाषण का एक और जरूरी पहलू है— मतदाता सूची में गैरकानूनी प्रवासियों की समावेशिता को रोकने की आवश्यकता. शाह ने इसे हिंदुस्तान के चुनावी लोकतंत्र के लिए चुनौती कहा और बल दिया कि सिर्फ़ नागरिकों को ही मतदान का अधिकार होना चाहिए. यह निर्णयात्मक कदम चुनावी प्रक्रियाओं की पारदर्शिता और राष्ट्रीय सुरक्षा को जोड़ने वाला है.
कुल मिलाकर, अमित शाह का भाषण सिर्फ़ सियासी बयान नहीं, बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा, लोकतांत्रिक संरचना और भूराजनीतिक रणनीति का एक मिश्रित विश्लेषण प्रस्तुत करता है. यह साफ करता है कि घुसपैठ का मामला सिर्फ़ सीमा सुरक्षा तक सीमित नहीं, बल्कि जनसंख्या, समाज और लोकतांत्रिक संस्थाओं पर भी व्यापक असर डालता है. इसे सामरिक दृष्टि से समझना और सियासी विमर्श में गंभीरता से लेना जरूरी है.
अमित शाह का विस्तृत संबोधन
बहरहाल, जहां तक अमित शाह के विस्तृत भाषण की बात है तो आपको बता दें कि केंद्रीय गृह मंत्री ने मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) प्रक्रिया का समर्थन करते हुए शुक्रवार को बोला कि मतदाता सूची में घुसपैठियों का शामिल होना संविधान की भावना को दूषित करता है और मतदान का अधिकार सिर्फ़ राष्ट्र के नागरिकों को ही मौजूद होना चाहिए. समाचार पत्र ‘दैनिक जागरण’ के पूर्व प्रधान संपादक नरेंद्र मोहन की स्मृति में ‘घुसपैठ, जनसांख्यिकीय परिवर्तन और लोकतंत्र’ विषय पर व्याख्यान देते हुए गृह मंत्री ने बोला कि केंद्र घुसपैठियों से निपटने के लिए ‘पता लगाने, हटाने और निर्वासित करने’ की नीति का पालन करेगा. अमित शाह ने बोला कि घुसपैठ और निर्वाचन आयोग की कवायद एसआईआर को सियासी नजरिये से नहीं देखा जाना चाहिए. उन्होंने इस बात पर बल दिया कि यह एक राष्ट्रीय मामला है.
उन्होंने पूछा, ‘‘मैं राष्ट्र के सभी नागरिकों से पूछना चाहता हूं कि यह कौन तय करे कि राष्ट्र का पीएम कौन बनेगा या सीएम कौन बनेगा? क्या राष्ट्र के नागरिकों के अतिरिक्त किसी और को यह तय करने का अधिकार होना चाहिए?’’ गृह मंत्री ने बोला कि कांग्रेस पार्टी एसआईआर के मामले पर ‘‘इनकार की मुद्रा’’ में चली गई है. उन्होंने बोला कि यह प्रक्रिया विपक्षी पार्टी की गवर्नमेंट के दौरान भी हुई थी. उन्होंने कहा, ‘‘विपक्ष विरोध करने की नीति अपना रहा है, क्योंकि उनके वोट बैंक छिटक रहे हैं… मतदाता सूची की गड़बड़ियों को दूर करना करना निर्वाचन आयोग की कानूनी जिम्मेदारी है. यदि आपको कोई परेशानी है, तो आप न्यायालय जा सकते हैं.’’ शाह ने बोला कि एक समय ऐसा आएगा जब विपक्ष को भी नहीं बख्शा जाएगा. उन्होंने बोला कि विपक्ष का बोलना है कि घुसपैठ रोकना केंद्र की जिम्मेदारी है क्योंकि बीएसएफ (बीएसएफ) उसके नियंत्रण में है, लेकिन सीमा पर कुछ ऐसे क्षेत्र हैं जहां भौगोलिक स्थिति के कारण बाड़ नहीं लगाई जा सकती.
गृह मंत्री ने कहा, ‘‘केंद्र अकेले घुसपैठ नहीं रोक सकता. राज्य सरकारें ऐसे घुसपैठियों को संरक्षण देती हैं क्योंकि कुछ दलों को उनमें वोट बैंक दिखता है.’’ उन्होंने बोला कि स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनाव तब तक नहीं हो सकते जब तक मतदाता सूची मतदाताओं की परिभाषा के मुताबिक न हो, अर्थात भारतीय नागरिक होना और उसने निर्धारित उम्र प्राप्त कर ली हो. घुसपैठिए और शरणार्थी के बीच अंतर को रेखांकित करते हुए शाह ने बोला कि शरणार्थी अपने धर्म को बचाने के लिए हिंदुस्तान आता है, जबकि घुसपैठिया धार्मिक उत्पीड़न के कारण नहीं, बल्कि आर्थिक और अन्य कारणों से गैरकानूनी रूप से सीमा पार करता है. उन्होंने कहा, ‘‘घुसपैठिए कौन हैं? जिन लोगों को धार्मिक उत्पीड़न का सामना नहीं करना पड़ा है और जो आर्थिक या अन्य कारणों से गैरकानूनी रूप से हिंदुस्तान आना चाहते हैं, वे घुसपैठिए हैं. यदि दुनिया में कोई भी आदमी जो यहां आना चाहता है और उसे ऐसा करने दिया जाये, तो हमारा राष्ट्र एक धर्मशाला बन जायेगा.’’
शाह ने याद दिलाया कि पूर्व पीएम जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व वाली हिंदुस्तान गवर्नमेंट ने पाक के हिंदुओं से वादा किया था कि विभाजन के बाद तनाव कम होने पर उन्हें राष्ट्र में स्वीकार कर लिया जाएगा. उन्होंने बोला कि यह वादा नेहरू-लियाकत समझौते का हिस्सा था. शाह ने कहा, ‘‘धर्म के नाम पर इस राष्ट्र का बंटवारा एक बहुत बड़ी भूल थी…भारत माता की भुजाएं काटकर आपने अंग्रेजों की षड्यंत्र को सफल बनाया.’’ उन्होंने बोला कि एक के बाद एक सरकारें इस वादे को भूलती गईं और 2014 में नरेन्द्र मोदी गवर्नमेंट के सत्ता में आने के बाद ही संशोधित नागरिकता अधिनियम (सीएए) के माध्यम से इस वादे को पूरा किया गया.
आजादी के बाद की जनगणना के आंकड़ों का हवाला देते हुए, शाह ने कहा कि 1951 में हिंदुओं की जनसंख्या 84 फीसदी और मुसलमानों की 9.8 फीसदी थी, जबकि 1971 में हिंदू 82 फीसदी और मुस्लिम 11 फीसदी थे, 1991 में हिंदू 81 फीसदी और मुस्लिम 12.21 फीसदी थे, जबकि 2011 में हिंदू 79 फीसदी और मुस्लिम 14.2 फीसदी थे. गृह मंत्री ने कहा, ‘‘2011 की जनगणना के अनुसार, मुसलमानों की वृद्धि रेट 24.6 फीसदी थी जबकि हिंदुओं की 16.8 फीसदी थी. यह प्रजनन रेट के कारण नहीं, बल्कि घुसपैठ के कारण था.’’ उन्होंने दैनिक जागरण के पूर्व प्रधान संपादक की स्मृति में ‘जागरण साहित्य सृजन सम्मान’ भी प्रदान किया. यह पुरस्कार हिंदी साहित्य की विभिन्न विधाओं में से किसी एक में मौलिक कृति के लिए दिया जाता है.

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